
धारुपुरा नामक एक सुनसान गांव, जिसका इतिहास और परंपराएं गहरे अंधविश्वासों और रहस्यों से घिरी हुई हैं। यह गांव एक ऐसे अंधेरे राज़ को संभाले हुए है, जहाँ बच्चे एक के बाद एक गायब हो रहे हैं।
गायब होने वाले बच्चे और ‘खूनी हवेली’
रवि, सुमित, और गीतांजलि – ये तीन बच्चे अचानक गांव से लापता हो गए। गांव के बाहर स्थित एक पुरानी हवेली, जिसे ‘खूनी हवेली’ कहा जाता है, इस घटना का प्रमुख संदिग्ध स्थल है।
इस हवेली के बारे में कहा जाता है कि वहाँ काले जादू और पुराने पंथ का असर है। रात के सन्नाटे में वहां अजीब आवाज़ें सुनी जाती हैं, लेकिन कोई भी वहां कदम रखने की हिम्मत नहीं करता।
रहस्यमय घटनाएं और गांव की प्रतिक्रिया
- हवेली की दीवारों पर खून जैसी लाल पुताई
- कुएं के पास पुराने घुटनों के निशान
- छांव में समीपस्थ महिला की भुतारूपी आवाज़
इन घटनाओं ने गाँव में डर और शक की हवा फैला दी है। पुलिस द्वारा चलाए गए सर्च अभियान व्यर्थ साबित हुए।
पुरानी लाइब्रेरी और रहस्य की किताब
पिता के अनुसार, रवि हवेली में छुपी एक पुस्तक दिखाने की इच्छा रखता था, जिसमें उसके परिवार का इतिहास समाहित था। यह पुस्तक संभवतः उन रहस्यमय ग्रंथों में से एक हो सकती है, जो काले जादू से संबंधित हैं और हवेली की पुरानी लाइब्रेरी में रखे गए थे।
अंतिम विचार
धारुपुरा के जंगलों में हवेली अब भी भय और रहस्यों से घिरी हुई है। गांव के लोग डर से हवेली के नजदीक नहीं जाते, जबकि गायब बच्चों की अनसुलझी कहानी आज भी छुपी हुई है।
क्या यह हवेली सच में जिंदा है? क्या वह किताब कभी फिर से खुल पाएगी? और वो आवाज़, “वापस आ जाओ… लौट कर नहीं आना”, उसके पीछे की कहानी क्या है? ये सवाल धारुपुरा के रहस्यों को और गहरा बना देते हैं।
सारांश
धारुपुरा गांव में गायब बच्चों की रहस्यमयी कहानी और पुरानी पंथों तथा काले जादू के संदिग्ध पहलुओं के कारण यह कहानी एक भयानक और अनसुलझे रहस्य के रूप में आज भी विद्यमान है। इस कहानी में परिसर, परिवार, और आत्मीयता से भरी मानवीय भावनाओं के बीच भय और अंधकार के तत्व गहराई से जुड़े हुए हैं।