Summary: एक छोटे से गांव में बुजुर्ग राकेश मिश्र की रहस्यमयी तरह से गुमशुदगी ने पूरे इलाके को दहलाया। उनकी गायब होने वाली रात एक काली छाया, काला जादू, रहस्यमयी नोट्स और अलौकिक घटनाओं से भरी हुई थी। गांव के लोग और युवाओं द्वारा की गई खोज ने कई अनसुलझे सवाल छोड़ दिए कि क्या यह हत्या थी, पंथ की साजिश या फिर कोई अलौकिक शक्ति। इस कहानी की अनजानी गहराई आज भी उस गांव पर काली छाया की तरह मंडराती है।
गांव की रहस्यमयी पृष्ठभूमि
सुनसान पहाड़ियों से घिरी यह बस्ती समय के साथ जैसे थम गई हो। पुराना महल और आसपास के पेड़ हवा में फुसफुसाते हैं, जो एक भयानक रहस्य की ओर इशारा करते हैं।
राकेश मिश्र का रहस्यमय गायब होना
गांव के सबसे प्रतिष्ठित बुजुर्ग राकेश मिश्र के अचानक गायब होने के बाद घर का हाल:
- दरवाज़ा खुला मिला
- अजीब सन्नाटा
- कोई संघर्ष के निशान या टूट-फूट नहीं
- चारों ओर फैली काली राख की परत
- जमीन पर मुड़ी हुई रहस्यमयी उड़ती हुई राख जैसी लकीर
राकेश मिश्र के बारे में ग्रामीणों की मान्यताएं
कुछ लोगों का विश्वास था कि उनकी किताबों में काला जादू और पंथ के रहस्य थे।
कुछ का कहना था कि वे जादू टोना में संलग्न थे, और कुछ मानते थे कि वे अपने इतिहास के भूतों से जूझ रहे थे।
पुलिस की खोज और अनसुलझे कागजात
- महल के तहखाने से मिले सीक्रेट नोट्स
- जटिल चिन्ह और अभिशाप के संकेत अंग्रेज़ी और संस्कृत में
- एक पन्ने पर लिखा था: “मत जागाओ उस पल… वरना काल तुम्हें ले जाएगा।”
अजीब घटनाएं और गांव वालों की प्रतिक्रिया
- राकेश मिश्र के गायब होने के बाद से घटनाएं जैसे गायों की मौत
- अंधेरे में गुमसुम आवाजें और देखने को न मिलने वाली छाया
- लोगों ने खिड़कियां बंद कर लीं और गांव में डर का माहौल
- राकेश मिश्र की कोई कब्र नहीं, उनकी मौजूदगी खौफनाक बनी हुई
युवाओं की खोज और अनजानी परिणति
कुछ युवाओं ने महल के तहखाने में जाकर रहस्यों की तलाश की:
- दरवाजा चरमरा गया
- ठंडी धुँध फैल गई
- हथेलियों पर काली धूल
- दीवारों पर अलौकिक चेतावनियाँ
- खुली किताब जिसमें लिखा था: “मौत के दरवाज़े पर कदम रखने वाले, तुम्हारा स्वागत अधूरा है।”
कुछ दिन बाद उन युवाओं का पता नहीं चला। बाद में गांव लौटे एक लड़की की कथाएँ ‘अज्ञात सत्ता’ द्वारा रोके जाने और वापस ना लौट पाने के बारे में थीं।
अनसुलझे सवाल और रहस्यमय छाया
क्या यह सब काला जादू था? पंथ की साजिश? या कोई हत्या जिसका खुलासा नहीं हुआ?
पूर्णिमा की रातों में वह काली छाया गांव की हवेली से गुजरती है, मानो किसी का इंतजार हो।
निष्कर्ष
राकेश मिश्र की कहानी आज भी समाप्त नहीं हुई। यह एक जकड़ी हुई आत्मा की कहानी है जो इस संसार और परलोक के बीच फंसी हुई है, और शायद आज़ादी की प्रतीक्षा कर रही है।
दरवाजा अभी भी चरमरा रहा है, और सन्नाटा गूंज रहा है।
