Summary: यह कहानी एक पुरानी हवेली, गुमशुदा युवक राकेश और काले जादू के रहस्यों से जुड़ी सच्ची घटना पर आधारित है, जो आपको डराने और सोचने पर मजबूर कर देगी।
खूनी हवेली की गूंज: उस रात जो लौट कर नहीं आया
दिसंबर की कड़कती ठंड रात थी। गांव के किनारे खड़ी पुरानी हवेली से अजीब सी आवाजें आने लगीं थीं। लोग कहते थे कि बारिश की उस अधूरी रात, हवेली के अंदर से कोई चिल्लाहट सुनाई दी, एक ऐसी चीख जो न तो मानवी थी, न पशु। पिछले कई साल से वह हवेली वीरान पड़ी थी, जिसके जर्जर दरवाजे और टूटी खिड़कियाँ जैसे किसी भयानक राज़ को छिपाए हुए थीं।
जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, गांव के कुछ युवा वहाँ प्रेतवाधित हवेली की जाँच करने निकले। उनमें से एक, राकेश, उस रात के बाद कभी वापस नहीं लौट पाया। उसकी गुमशुदगी ने पूरे इलाके में सिहरन फैला दी।
राकेश के दोस्त बताते हैं कि वह हमेशा से रहस्यों के पीछे भागता था, लेकिन उस रात उसकी आँखों में एक अलग ही डर था। हवेली के अंदर जब एक दर्दनाक चीख फूटी, तो सब घबराकर भागे, लेकिन राकेश कहीं खो गया। कुछ लोगों ने दावा किया कि हवेली की दीवारों पर पुराने काले जादू से बने निशान झिलमिला रहे थे।
जांच के दौरान, पुलिस ने हवेली से एक पुरानी किताब बरामद की, जिसमें अज्ञात भाषा में नक़्शे और अजीब तरह के प्रतीक अंकित थे। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि वह किताब काला जादू और पंथ के लिए इस्तेमाल होती थी।
मगर सबसे विचित्र बात तो यह थी कि राकेश की खोज के लिए निकली टीम ने हवेली में अजीब सी ठंडी हवा का अनुभव किया, जो बिना किसी दरवाज़े के आती और जाती थी। हवेली की खिड़कियाँ भी बंद थीं, पर अंदर से लगातार फुसफुसाहटें हो रही थीं।
कई महीने गुजर गए, लेकिन राकेश का कहीं पता नहीं चला। गांव के लोग कहते हैं कि जो हवेली के अंदर गया, वह वापस नहीं आया, और जो पास गया, उसने अंधेरे में उन छायाओं को देखा जो इंसानी नहीं थीं।
जैसे-जैसे इस रहस्य के पीछे की परतें खुलती गईं, पता चला कि कुछ गांव वाले भी इस पंथ का हिस्सा थे, जो उन पुराने काले जादू की प्रथाओं को छुपा रहे थे। हर दरवाज़ा जो खोलने की कोशिश हुई, एक नई खौफनाक सच्चाई सामने ले आती।
रहस्य और सवाल
अब सवाल ये है कि:
- क्या राकेश सचमुच किसी अलौकिक शक्ति के शिकार हुआ?
- या फिर यह सब एक सुनियोजित हत्या थी?
- और वह किताब, जो काला जादू के रहस्य बरकरार रखती है, क्या किसी और को इस काले जादू की कमान देने के लिए तैयार है?
जैसे ही रात का सन्नाटा हवेली पर अपना राज कायम करता है, सवाल अपनी गूँज छोड़ते हैं, किसी को हल करने के लिए। दरवाज़ा धीरे-धीरे चरमरा रहा है… और सन्नाटा गूँज उठा।
