
वो ठंडी, काली रात थी जब पहाड़ों की गोद में बसा एक छोटा सा गांव अचानक एक अनदेखी छाया की गिरफ्त में आ गया। उस रात से पहले, गांव के लोग शांति से जीवन जी रहे थे, मगर उस दिन का अंधेरा कुछ अलग सा था—जैसे हवा में कोई अनजान साजिश लिपटी हो।
गांव के सबसे बुज़ुर्ग माने जाने वाले रामलाल के घर से एक हड़बड़ी भरी चीख निकली जो गांव के हर घर में गूंज गई। रामलाल कुछ ऐसा देखकर दहल गया था, जो विज्ञान की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता। कहते हैं कि उसने अपने पीछे कुछ रहस्यमय पदचिह्न देखे थे—जिन्हें समझना उसके बस की बात नहीं थी। आस-पास के लोग उस रात को शिकायत करते रहे कि नींद नहीं आई, मानो हवा में कोई खून सा बह रहा हो।
अगले दिन, जब गांव के कई युवक रामलाल के घर पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि घर न जाने कब खाली हो चुका था। रामलाल नदारद था। उसकी कुर्सी पर धूल जमा थी, और घर के कोने में एक पुरानी किताब बिखरी हुई मिली—जिसपर अजीबोगरीब चित्र और प्रतीक बने हुए थे। जैसे वह कोई जादुई ग्रंथ हो, जिसमें छिपे हों काले तंत्र के रहस्य।
किसी ने बताया कि रात के वक्त लाल-सी चमकती आग की लपटें रामलाल के घर से उठती देखी गई थीं। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि उस क्षेत्र में सदियों पुरानी काली सन्धि दबी हुई है, जिनके टूटने की कीमत जान से बढ़कर हो सकती है। लेकिन कौन और क्यों उस प्राचीन शक्ति को जागृत करना चाहता था?
दिन बीतते गए, पर रामलाल का कोई अता-पता नहीं मिला। उसकी तलाश में गए कुछ लोगों ने अपनी विचित्र मौतें देखीं—किसी का शव बोरे में लपेटा मिला, तो कोई बलखाता हुआ वापस आया लेकिन उसके चेहरे पर कभी की गई चीख की झलक थी। कहानी गांव में फैल गई, धीरे-धीरे भय ने लोगों के दिलों पर कब्जा जमा लिया।
बीच-बीच में कुछ अजीब संकेत भी मिलते रहे—जंगल के किनारे जमीन में दबी हुई कुछ चिन्हित आकृतियाँ, नक्शे जो किसी गुप्त मार्ग की ओर इशारा करते थे, और एक छोटी-सी घंटी जो खुद से बजने लगती थी। पूछो तो लोग कुछ नहीं बताते थे; उनकी निगाहें डर से चमकी हुई होती थीं।
एक रात, गांव के सबसे साहसी युवक ने तय किया कि वह इस रहस्य की तह तक जाएगा। जब वह रामलाल के खाली घर के पास पहुँचा, तो वह सब कुछ वैसा लगा जैसे वहां अभी-अभी कोई बड़ी त्रासदी हुई हो। दरवाज़ा धीरे-धीरे चरमराया… और सन्नाटा गूंज उठा। अंदर घुसते ही उसे हवा में चमकती हुई एक ठंडी, अधोगति की तरह गिरती हुई रोशनी दिखी।
उसने देखा कि घर की दीवारों पर लाल रंग से बनी कुछ युवती के निशान थे और एक पुरानी डायरी पड़ी थी, जिसमें लिखा था – “जो इस मार्ग पर आता है, वह लौट कर नहीं आता।”
क्या सच में काला जादू इस गांव की मिट्टी में दफ्न है? या कहीं ऐसा कोई रहस्यमय पंथ है जो इन पहाड़ों के बीच गुप्त बैठकों में अपनी सायों को फैलाता रहता है? रामलाल कहाँ गया? वह कौन था जो उसकी मौजूदगी में भी अंधेरे को इतनी स्वाभाविकता से जी रहा था?
सवाल कई थे, पर जवाब धुंधले। ये जो गांव में दफन राज़ थे, वे अभी भी किसी जीवित साए की तरह हिलोर मार रहे थे। शायद अगले मोड़ पर तथ्यों की परतें खुलें या फिर इस रहस्य की गहराइयाँ और भी भयावह हो जाएं। एक बात तय है – इस कहानी में अभी भी कहीं न कहीं एक अधूरी हरकत बाकी है, जो रविवार की ठंडी हवा की तरह धीरे-धीरे एक भयानक सत्य की ओर ले जाती है।
सारांश
गांव के एक बुजुर्ग, रामलाल के रहस्यमय रूप से गायब होने के बाद, एक पुरानी काली सन्धि और अंधकारमय ताकतों का पर्दाफाश होता है। गांव में फैले डर, रहस्यमय घटनाएँ, और विचित्र मौतें इस कहानी को और भी भयावह बनाती हैं। रहस्यों से भरे इस गांव में, क्या काला जादू सच में दफन है या किसी गुप्त पंथ का साया है, यह अभी तक अनसुलझा है।
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