Summary: एक छोटे से गांव में गायब हुए युवक और काले जादू से जुड़ा पुराना रहस्य, जो आज भी गांव में भय और सस्पेंस का स्रोत है।
गांव में दफन राज़: वह जो लौट कर नहीं आया
धुंध भरे उस सर्ड फागुन के दिन थे जब उत्तर भारत के एक छोटे से गांव के किनारे एक भयावह घटना ने हवा में डर और सन्नाटा भर दिया। चारों ओर हरियाली थी, पर उस हरियाली के बीच एक ऐसा राज़ दफन था, जिसे कोई खोलना नहीं चाहता था। उस गांव में एक युवती की अचानक गायब हो जाना, और उसके बाद जो अनहोनी हुई, उसने पूरे इलाके को बेचैन कर दिया।
रवि, गांव का वह युवक जो सबकी निगाहों में साधारण सा था, अचानक रात की तन्हा सड़कों पर खो गया। बताया जाता है कि उस रात, जब चाँद एकदम अजीब तरह से चमक रहा था, रवि के आखिरी शब्द थे – “मुझे कुछ दिखा है, जिसे कोई नहीं देखना चाहिए।”
उसके गायब होने के बाद गांव में अजीब से गतिविधियां शुरू हो गईं। पराया साया जैसे हवेलियों की दीवारों से लटकने लगा। लोग कहते हैं कि रवि जिस पुराने खंडहर के पास गया था, वहां से अजीब आवाजें आती हैं, जो फिर कभी नहीं रुकती।
खंडहर में छिपा काला जादू
गांव के बुजुर्गों की मान्यता रही है कि उस खंडहर में काला जादू हुआ करता था, और यह जगह कभी पंथ के भटकते लोगों का केंद्र थी। धीरे-धीरे कुछ लोगों ने अपने कानों से ऐसा काला संगीत सुना, जो न कभी भूला जा सकता है, न समझा जा सकता है।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, कुछ युवक भी गायब होने लगे, पर किसी ने भी इस रहस्य का खुलासा नहीं किया। सवाल उठे कि क्या यह सब उसी काले जादू का प्रभाव था? या फिर यह सब कुछ मनोवैज्ञानिक तनाव की उपज था, जो गांव की गुप्त धारणाओं ने जन्म दिया?
रहस्यमयी काली किताब और उस रहस्य की गहराई
उस खंडहर के समीप एक झोपड़ी में रहस्यमयी काली किताब मिली, जिसके पन्नों में अजीब-अजीब गुप्त संकेत और मंत्र लिखे थे। गांव के पुरखे कहते हैं कि वह किताब ‘रहस्यों का भूगोल’ है, जिसे पढ़ने वाले कभी वापस वहीं नहीं आये जहां से शुरू हुए थे।
गांववासियों ने खंडहर के आसपास के इलाके से धीरे-धीरे कदम पीछे खींच लिए। पर रवि की माँ का मानना था कि उसका बेटा शायद अलौकिक किसी रहस्य में फंस गया था। किसी ने काला जादू का सहारा लिया था, तो कोई मानता था कि वह कहीं विद्रोह कर लौटेगा। पर सचिफ कुछ और ही था।
अदृश्य यथार्थ और असमाप्त सस्पेंस
रवि के कमरे में वापस मिलने वाली कुछ अजीब चीजें इस बात का प्रमाण थीं कि वह तभी से अजीब यथार्थ और परछाइयों के बीच कहीं फंसा है। उसकी डायरी में कई ऐसे शब्द उभरकर आए थे, जिन्हें कोई समझ नहीं पाया – “दरवाज़ा धीरे-धीरे चरमराया… और सन्नाटा गूंज उठा।”
वह जो लौट कर नहीं आया, उसके पीछे छुपा रहस्य आज भी गांव में गूंजता है। क्या वह सच में खो गया? या वह किसी दूसरी दुनिया के द्वार से गुजर चुका है? इस कहानी में जो भी हो, एक बात स्पष्ट है – कभी-कभी कुछ रहस्य अपने पर्दे खोले बिना ही बेहतर होते हैं।
अंतिम विचार
इस गांव की गलियों में अभी भी वह साया है, जो कभी जाता नहीं, और जो सवाल हर दिल में उठता है – क्या वह कभी वापस आएगा? शायद उत्तर वही छुपा है, जहां प्रकाश नहीं पहुंचा।
