
Summary: एक गांव की पुरानी हवेली में छुपे काले जादू और एक युवक की रहस्यमयी गुमशीं की कहानी, जो सदियों से दफन रहस्यों को जिंदा रखती है।
गांव की रहस्यमयी शांति
सुनसान गलियों और धुंध से घिरे उस छोटे से गांव में, एक अजीब-सी सन्नाटा छाया हुआ था। रात के पहले पहर में, जंगल की ओर से धीमी आवाज़ें गूंजतीं, जिससे गांव के लोग अपने घरों में छुप जाते थे। यह माहौल उस गांव के पुराने और छुपे हुए रहस्यों का इशारा करता था।
अरुण की गुमशीं
अरुण, गांव का एक युवा लड़का, अचानक गायब हो गया। उसका गायब होना सामान्य नहीं था। वह बाबा की हवेली में छुपी जादुई किताब की खोज में लगा था, जो पुराने ज़माने के रहस्यों का भंडार थी। उसने कहा था कि वह उस किताब को ढूंढ़ निकालेगा और गांव के काले राज़ खोलेगा, लेकिन वह कभी वापस नहीं आया।
हवेली और काला जादू
हवेली के पास की रातें भयानक लगती थीं। अरुण की आखिरी रात बेगम की छतरी के नीचे बिताई गई थी, जहां काला जादू और प्रेतात्माओं की कहानियाँ गूँजती थीं। खोजी दल जब हवेली पहुंचे, तो वे विचित्र औजारों और पुरानी पांडुलिपियों के बीच खो गए। अधजली किताब के पन्ने शापित मंत्रों और अस्पष्ट संकेतों से भरे हुए थे।
कहानी की गहराई और सवाल
गांव वालों ने महसूस किया कि अरुण की गुमशीं केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक बड़ी मानसिक और अलौकिक साजिश से जुड़ी थी। हवेली की खिड़कियों से अजीब रोशनी टिमटिमाती और छतसंवादों में अनजान आहट सुनाई देती थी। बुजुर्ग कहते थे कि जो एक बार उस काले जादू की किताब के राज़ में फंसा, वह वापस नहीं आ पाया।
रहस्य और अनसुलझे सवाल
- क्या अरुण सचमुच काला जादू जानने निकला था?
- क्या उसके पीछे कोई बड़ी साजिश थी?
- क्या हवेली आज भी किसी खौफनाक राज़ की गवाह है?
- और सबसे बड़ा सवाल: क्या अरुण कभी वापस आएगा, या उसकी आत्मा उस किताब और हवेली की दहलीज में फंसी है?
दरवाज़ा धीमे-धीमे चरमराया… और सन्नाटा गूंज उठा।